Maachis माचिस
माचिस की एक दियासलाई ने खुद को जलाकर,
उनके बंद अंधेरे कमरे को रोशन करके,
बिखरे हुए अस्तव्यस्त कमरे से रूबरू करवाकर,
कमरे की खिड़कियों और दरवाजों को खोलकर रखने का इशारा ही दिया था।
उन्होंने तो माचिस को ही बदनाम कर दिया,
कुछ इस तरह...
"सब कुछ महँगा हो गया,
लेकिन माचिस अब भी 1 रुपये पर रुकी हुई है,
पता है क्यूँ ?...
क्योंकि आग लगाने वालों की कीमत कभी नहीं बढ़ती।"
"बेग़ैरत, एहसान फ़रामोश, इन शब्दों का मतलब
सही में आज समझ में आया है..."
जय श्री राम !
(मनोज कुमार विट्ठल)
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